i
मां कष्ट सहकर,
औलाद पैदा करती।
जीवन का एक – एक पल,
औलाद पर न्योछावर करती।।
पिता रात दिन मेहनत करता,
औलाद को काबिल बनाता।
अपने सुदंर सपने त्याग कर,
औलाद के सपने पूरा करता।।
हदय मे बस एक ही आस,
औलाद बनेगा बुढ़ापे का सहारा।
जब शरीर से होगें लाचार,
हाथ पकड़ कर देगा सहारा।।
पर सब सपने जाते बिखर,
जब औलाद हो जाता बेखबर।
अपनी दुनिया में रहता मस्त,
नही लेता मां – बाप की खबर।।
आस टूटता विश्वास टूटता
जैसे हाथ से रेत फिसलता।
टूट गया सब स्वप्न – सजीला,
जैसे टूटी मोतियों की माला।।
अबंक में भरा,दर्द-भरा-नीर,
उर में तकलीफो की तकलीफ़।
फिर भी ना करते शिकायत,
जी लेते जब तक यह जीवन।।
मैं बीता हुआ कल,तू आने वाला कल,
इस पल से तुझको भी गुजराना कल।
आज समझ सकता है तो समझ,
ना झेलना पड़े तुझको यह दर्द।।
माता – पिता बनना सबका होता सपना,
उनसे आस लगाते क्योंकि होता वह अपना।
ज्यादा कुछ नही चाहते बस हाथों का सहारा,
देना इज्जत,प्यार के दो मीठे बोल बोलना।।
प्रियंका पांडेय त्रिपाठी