सलमा अपने छत पर खड़ी तारों को निहारती सोहेल को याद कर रही थी ।अब दो वर्ष बीतने को है ,न जाने आने का कब प्रोगाम बने।काम के सिलसिले में विदेश गया था ।
कुछ दिन तो जरुरतें और जिम्मेवारी तले उतनी तकलीफ नही हुई पर इन दिनो सोहेल की कमी बड़ी शिद्दत से महसूस कर रही थी
आकाश निहारती ,शुन्य में झांकती कभी-कभी बदली की ओट में छिपा चांद भी झांक लेता,मौसम भी सर्द लिए धूमिल सा दिख रहा था।
अपने ख्यालों में खोई ही थी कि तभी, पड़ोस की रत्ना को आवाज देता उसका पति रमेश उसे छत पर जल्दी आने के लिए कहता है।
“रत्ना जल्दी करो!,कहीं चांद छुप न जाए।”
रत्ना रमेश की आरती उतारती है और चांद का दर्शन भी हो जाता है।
चलो जल्दी पानी पीकर व्रत तोड़ो ….
रमेश के हाथों पानी पीती रत्ना की नजर सलमा पर पड़ती है जो बड़े गौर से मुस्कुराती हुई देख रही थी।
“अरे क्या बात है भाभी.?”
“आप परेशान दिख रही हैं.?”
नहीं कुछ भी नही तो बस ऐसे ही आपके भाई को याद कर रही थी ,कितने दिन हो गये उनको गये।
रत्ना ये चांद को देखकर तुम क्या कह रही थी .?
“भाभी कहते है आज की चांदरात जो भी मांगो वह मिल जाती है,आप भी कुछ मांग लो न।”
या भाई के लिए कोई संदेशा ही भिजवा दो ,हो सकता है संदेशा उनतक पहुँच जाए।रत्ना ने सलमा को छेड़ते हुए कहा..
क्या सच में ऐसा होता है कहीं रत्ना..
हां भाभी! हमारी आपकी दुनिया में तो इन्ही के सहारे ही है ।
कभी चांद ,कभी सूरज, कभी तारे ..कुछ न मिला तो पत्थरों मे ही ईश्वर को ढूँढ लेते है।
सलमा चांद की ओर मुखातिब थी,हाथ उठाए दुआएं मांगती आंखे भर आई थी।
भाभी ! आप की दुआ जरुर कुबूल होगी।
रत्ना से बातें खत्म कर नीचे आई ही थी कि फोन की बजती रिंग से दिल जोर जोर से धड़क उठा था।
हेलो!सलमा अगले हफ्ते की फ्लाईट है मेरी ,मैं आ रहा हूँ।
सच !रत्ना ने सही ही कहा था….
दिल से मांगी गई दुआ कुबूल हो गई मेरी …
आमीन!!!
सपना चन्द्रा
कहलगाँव भागलपुर बिहार