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अब तो
तसल्लियाँ भी
सवाल बनके खड़ी हैं
उम्मीद की नदियाँ भी
हाँफने लगी हैं,
प्रेम के हर मोड़ पर
रोशनी सजा तो रखी थी
पर अब-
अंधेरे मे ही हर ख़ुशी।
ढुँढनी पड़ रही है ।
लगता है
वहम पाल रखा है मैंने
सिर्फ आँखों में बिजली की
चमक छा रही है
और बरसात तो
कोसों दूर खड़ी
मुझ पर हँस रही है
कब तक
यूँ आवाज दुँ तुम्है ?
कभी तो अपने आपको
खुद के दिल की गुफ्तगु में
शामिल कर के तो देखो
मेरा दिल तो
हमेशा ताकता है
एक ही रास्ते की तरफ पर
पता नही
क्या मिलता है तुम्हें
सिलसिला ये तोड़कर ।
● अनुपमा कट्टेल, दीमापुर (नागालैण्ड)