तुम्हे देख कर हम निखरने लगे हैं।
है जीवन में मुझको मिला साथ तेरा,
ख़ुदा ने दिया हाथ मे हाथ तेरा,
हमेशा तुम्हारे ही होकर रहेंगे,
यही सोच कर हम संवरने लगे हैं।
मोहब्बत के रंग अब बिखरने लगे हैं।
ये माथे पे बिंदिया लगाई जो हमने,
ये चूड़ी की खनखन सुनाई जो हमने,
सजन तुमने देखा जो शोख़ी से हमको,
तो शर्मा के हम तो सिमटने लगे हैं।
मोहब्बत के रंग अब बिखरने लगे हैं।
ये घड़ियां जुदाई की काटूं भी कैसे,
मेरे चाँद तुझको मैं देखूं भी कैसे,
ये चिलमन हमारे जो अब दरमेयां हैं,
ये आंखों को मेरी तो चुभने लगे हैं।
मोहब्बत के रंग अब बिखरने लगे हैं।
तेरी राह से ग़म को चुनती रहूंगी,
तेरा साया बनकर ही चलती रहूंगी,
ये रब से दुआ है मिले हर जनम तू,
दुआ हर घड़ी रब से करने लगे हैं।
मोहब्बत के रंग अब बिखरने लगे हैं।
ज़रीन सिद्दीक़ी(दिल्ली)