मानवता

हम ‘विरही’ऐसी हस्ती हैं

हर दिल में भाव जगा देंगे।

आँसू के दरिया की किश्ती 

हर दिल का पार लगा देंगे।

ना गैर क़ोई सब अपने हैं 

हर दिल से अपना नाता है।

हो खोट भला कैसे मन में 

जो गीत वफ़ा के गाता है।

सबके दिल में हम मस्ती और 

उल्फत की पीर सजा देंगे।

है एक धर्म मानवता का 

उसको अपनाये रहते हैं।

हर मानव की पीड़ा को हम 

अपना ही कहकर सहते हैं।

बहती आँखों के नीर पिएं 

खुशियों के फूल खिला देंगे।

धरती माँ, पिता गगन सबके 

ये चाँद सितारे भाई हैं।

सोचो तो बैर करें किससे 

हम आदम की परछाई हैं।

हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख,ईसाई 

हम सबका भेद मिटा देंगे।

वीरेन्द्र मिश्र बिरही,वरिष्ठ साहित्यकार 

गोरखपुर-उत्तर प्रदेश