जब सिन्दूर बन जाए श्राप

जब माँग का सिन्दूर कलंक सा लगे,

जब कलंकित हो जाए माथे की बिंदिया।

उस हाथ से अपने हाथ को छुड़ा लेना,

जिस हाथ मे बाबा ने तेरा हाथ दिया।।

मंगलसूत्र जब बन जाए गले का फंदा,

जब कंगन हो जाए हथकडियां सी।

उस रिश्ते को तुम भुला देना,

जिसने तेरी आजादी छीन लिया।।

उस हाथ से अपने हाथ छुडा लेना,

जिस हाथ मे बाबा ने तेरा हाथ दिया।

जब पांव मे बिछुवा चुभने लगे,

जब पायल बन जाए बेड़ियां सी।

उस बंधन को तुम तोड़ देना,

जिस कैद मे तुमने घुट के जिया।।

उस हाथ से अपने हाथ छुड़ा लेना,

जिस हाथ मे बाबा ने तेरा हाथ दिया।

तोड़ो तुम ये अधीनता के पिंजरे,

उड़ जाओ इस उन्मुक्त गगन मे।

तुम स्त्री हो पर निर्बल तो नहीं,

मंजिल को चलो अपने मगन मे।।

वहाँ ठहर जाना तुम जहाँ हो मान 

सम्मान, और जलता हो जहाँ प्रेम दिया।।

उस हाथ से अपने हाथ छुड़ा लेना,

जिस हाथ मे बाबा ने तेरा हाथ दिया।।

राधिका मिश्रा

  भागलपुर (बिहार)