काव्य-संग्रह ‘उमंग’ पर समीक्षा

 अंतर्मन की वीणा से निकले गीतों का संग्रह

सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री अमृता प्रीतम जी ने कहीं लिखा है-“मुहब्बत का एक लफ़्ज जब किसी की आत्मा में चिराग़ की तरह जलता है, तो फ़िर जितने भी अक्षर उसके होंठों पर आते हैं, वे रोशनी बाँटते हैं। वे इन्सान को हर जाति और मज़हब की सँकरी गलियों से निकालकर मुहब्बत के धर्म की उस वादी में ले जाते हैं, जहाँ चेतना का फ़ूल खिलता है, जहाँ इन्सानियत का फ़ूल खिलता है, जहाँ किसी भी राष्ट्र की एकता का फ़ूल खिलता है…।” तमाम इन्द्रधनुषी अनुभवों के साथ उम्र का एक लम्बा सफ़र तय करने के बाद अपनी जीवन संध्या की बेला में सेना के उत्तरदायी पद कैप्टन से सेवानिवृत्त डॉ. ब्रह्मानन्द तिवारी जी निरन्तर साहित्यिक सृजन और लोक कल्याण के कार्यों से सबको अपने साथ चलने के लिए प्रेरित करते हुए राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। वह अनुशासन और संयम प्रेमी होने के साथ-साथ सरल, सहज और जल की भांति निर्मल स्पष्टवादिता के पक्षधर हैं, जिसकी झलक उनकी बहुआयामी रचनाधर्मिता में स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित होती है।

आज हम आपको श्री तिवारी जी के काव्य-संग्रह ‘उमंग’ से रू-ब-रू कराने जा रहे हैं। मन की गुल्लक में ये स्मृतियों के सिक्के न जाने कब से बाहर आने को कुलबुला रहे थे, जो अब पृष्ठों पर उतरकर हमारे समक्ष उपस्थित हैं। इसमें श्रंगार की छटा बिखेरते गीत हैं तो भक्ति भावना की सुवास बिखेरते गीत भी हैं। कभी ये हमें हर्ष, उल्लास से भरते हैं तो कभी विरह की अग्नि में तपाते हैं, तो कभी अध्यात्म और भक्ति की भट्टी में तपाकर सोने से कुंदन बनने की प्रक्रिया से एकाकार होने का सुअवसर प्रदान करते हैं। कुल मिलाकर ये गीत किसी भी सहृदयी को अपनी ओर आकृष्ट कर लेने में समर्थ हैं। छन्द प्रेमी तिवारी जी साहित्य में निपुण हैं और उनकी रचनाएं भावपक्ष और कलापक्ष की दृष्टि से उत्कृष्ट प्रस्तुति दृष्टव्य हैं-राम के अयोध्या आगमन पर ‘चौदह वर्षों का समय पूरा हुआ, राम आये अवध में मंगल हुआ, सज रही है आज नगरी राम की, हो रही है जय जय जय श्री राम की’, सीता का वनगमन पर यह रूदन भरा गीत ‘रो रही आज वन में दुखी जानकी, नाथ बिगड़ी का कोई सहारा नहीं, जो थे अपने वो बेगाने सब हो गये, आज मझधार में कोई हमारा नहीं’, कृष्ण से जुड़े ये कुछ गीत- ‘सखी री श्याम भये बेपीर, निरखत डगर थके दोऊ नैना कौन बंधावै धीर’, ‘श्याम तूने काहे कूं वंशी बजाई मेरो हिय उमगतु दर्शन कूं, चैनु परैना मनकूं पाती लिख लिख भई बावरी क्यूं तरसावत हमकूं’, ‘तान वंशी की कानों में जब से पड़ी, चैन मन का न जाने कहाँ खो गया, मेरी आँखों में सूरत बसी श्याम की, दिल की धड़कन को जाने ये क्या हो गया’, ‘श्याम आँचल मेरा छोड़ दो इस घड़ी, पाँव जमना में मेरा फिसल जाएगा, रोज की छेड़ अच्छी नहीं साँवरे, दिल हमारा किसी दिन मचल जाएगा’, ‘सूना वृन्दावन है तुम बिन क्या तुम नहीं आओगे, अपनी राधा को कन्हैया कब तलक तड़पाओगे’।

इस तरह सरल, सहज और प्रवाहमयी भाषा में सम्प्रेषणीयता लिए ये गीत इतने लयबद्ध हैं कि आप एक बार पुस्तक उठा लें तो फ़िर इन्हें गुनगुनाए बिना नहीं रहेंगे। इनमें से कई गीत तो हमारे पुत्रों अगस्त्य और औरव को भी इतने मन भाए कि वो अक्सर गुनगुनाते रहते हैं। आदरेय तिवारी जी को इस काव्य-संग्रह के सृजन के लिए हार्दिक बधाई और अनेकानेक शुभकामनाएं देते हुए, हम आपको इस काव्य उपवन में आमंत्रित करते हुए एक सुप्रसिद्ध गीत की इन पंक्तियों के साथ आपसे विदा लेते हैं-‘ज़िन्दगी प्यार का गीत है, इसे हर दिल को गाना पड़ेगा…’।

डॉ. सारिका मुकेश ,एसोसिएट प्रोफ़ेसर एंड हेड,अंग्रेजी विभाग,वी. आई. टी.,वेल्लौर-632 014

(तमिलनाडू)मोबाइल: 81241 63491

पुस्तक का नाम-उमंग (काव्य-संग्रह),लेखक-डॉ ब्रह्मानन्द तिवारी,प्रकाशन-उद्योग नगर प्रकाशन, गाजियाबाद (उ.प्र.)

संस्करण-प्रथम, जनवरी-2021,मूल्य-150/-रू, पृष्ठ-104