नीता और रीता दोनों सहेलियां थीं ।दोनों पढा़ई में होशियार थीं।नीता अमीर थीं गोरी थी वहीं रीता सावली और गरीब घर से थीं ।नीता के घर नौकरों की भीड़ लगी रहती थी जबकि रीता को सारा काम खुद ही करना पड़ता था। नीता की शादी बडे़ घर मे हुई रीता की शादी साधारण घर में ।
रीता जैसी खुद संस्कार वाली थी वैसे ही वह अपने बच्चों को संस्कार सीखाती जबकि नीता के बच्चे नौकरों के भरोसे पल रहे थें ।दीवाली की रात को नीता ने रीता को खाने पर बुलाया ।दोनों सहेलियां अपनी बाते कर रही थी बच्चे पटाखे फोड़ रहे थे ।नीता की सास वहीं बच्चों के साथ थी और पटाखों के पास ही बैठीं थी।अचानक कहीं से एक पटाखा नीता की सास के पास आकर गिरा और वहाँ रखें पटाखों मेंआग लग गईं और नीता की सास भी आग से घायल हो गईं ।चारों तरफ भगदड़ मच गईं ।तुरंत एम्बुलैंस को बुलाया गया ।नीता की सास को अस्पताल लेकर जा रहे थें ।रीता ने नीता से कहा -तू आंटी के साथ चलीं जा मै यहाँ सब सम्हाल लूँगी दीवाली के कारण सारे नौकर भी छुट्टी पर थे।लेकिन नीता ने मना कर दिया कहा – मै इनके साथ नही जा सकती मुझे पूजा करना है दीवाली की पूजा मेरे लिये जरुरी है वैसे भी वहाँ डाक्टर होगें ही वह देखेंगे मैं नहीं ।रीता ने कहा आंटी को इस समय किसी अपने की जरुरत है ।डाक्टर तो होगें ही लेकिन घर के लोगों का होना भी जरुरी है। लेकिन नीता ने मना कर दिया ।तब रीता ने कहा – पूजा तो हम बाद में कर सकते है लेकिन आंटी को कुछ हो गया तो वह हमें वापिस नही मिलेगीं ।लेकिन नीता ने कहा मै नही जाऊंगी तू चली जा तेरे बच्चे मेरे पास रह लेगें तू मम्मी के साथ चलीं जा ।
रीता ,नीता की सास के साथ अस्पताल आ गई ।वहाँ उसे एडमिट किया गया ।उनके हाथ पटाखों से जल गयें थे ।रीता सारी रात उनके पास बैठीं रहीं और उन्हें दिलासा देतीं रहीं कि आप जल्दी ठीक हो जायेंगी ।नीता की सास को अफसोस हो रहा था कि उसने अपने बच्चों को संस्कार क्यों नही सीखाए ।उसने हमेशा रुप को महत्वपूर्ण माना संस्कार को नहीं ।
आज नीता की सास घर आ गईं थी लेकिन उनके व्यवहार में बहुत परिवर्तन आ गया था ।अब उन्होंने जरुरत मंद लोगों की सेवा करना ही अपना उद्देश्य बना लिया था ।कोई भी अंजान व्यक्ति की सहायता करने में भी कभी नही हिचकिचाती थी ।आज वह बहुत बडी़ समाज सेविका बन गई है ।बहुत सारी संस्थाएं उन्हें समय – समय पर सम्मानित करती है ।उनसे जब पूछा जाता है कि आप ने मन में समाज की सेवा करने का विचार कहां से आया तो उनका एक ही उत्तर होता है कि दीवाली की रात की दुर्घटना ने उनके जीवन की राह बदल दी ।रुप रंग को ईश्वर की देन है लेकिन संस्कार तो हमारी ही देन है ।इसलिए अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहिये ।ताकि हम अच्छे समाज की स्थापना कर सके ।
रेणु फ्रांसिस (इंदौर )
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