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मेरे लिये तो तुम ही थे,मेरे लिये तो तुम ही थे
तुम्हारा रवैय्या मुझसे जाने क्यूँ बदल गया
गुलदान में फूल थे क़रीब फूल सा कोई
ये फूल देखकर के वो फूल-फूल जल गया
गया था मैं भी देखने सुन के जिसके बारे में
देखकर वो मुझे ख़ुद ही फ़िसल गया
तशरीह किये बग़ैर अपने मिसरे मैंने पढ़ दिये
मतलब तरह-तरह का मेरे शेर का निकल गया
इतने हसीन वाकये देखे सुने ना कभी
उसने सुना दिये तो नादान मैं बहल गया।।
ग़ुलाम हूँ मैं मग़र बादशाह से कम नहीं
मेरे हुक्म से कईं दफा बादशाह बदल गया
ये भी रहेगा नहीं दिन बहुत देखना
वो भी एक दौर था,दौर था बदल गया
क़रीब आ रहे हो तुम बात एक सुन भी लो
हैरत न करना चेहरा ये जिस दिन बदल गया
ख़राब मुझसा होता तो टिकता और कुछ दिन
अच्छा आदमी था जल्दी दुनिया से निकल गया
ख़तरनाक कहते थे जंगल सब जिसे
मेरी इक दहाड़ से सारा दहल गया
ज़ाकिर हुसैन ‘अमि’
अध्यक्ष-म.प्र.लेखक संघ
सनावद-मोब-8319000979