नारी जीवन की धारा है
उससे ही आँगन प्यारा है।
घर आंँगन में खुशियांँ महके
लगता यह उपवन सारा है।
अपनों के वह सुख-दुख बांँटे
खुश होकर तन -मन वारा है।
घर आंँगन खिड़की दरवाजे
उससे घर रोशन सारा है।
बच्चों को वह हृदय लगाती
खिलता तब बचपन न्यारा है।
वह अनुपम पकवान पकाती
उसके बिन भोजन खारा है।
बिन घरनी घर भूत का डेरा
वामा बिन सब अँधियारा है।
वीनू शर्मा
जयपुर-राजस्थान