आसूं

पलकों पर संजोकर रखे हैं,

आंसू नहीं ये मोती हैं ,

कयामत के दिन काम आएंगे।

कुछ और नहीं है यह, 

भाव है दिल के जो नए 

अंदाज में बह जाएंगे।

जब तन्हाई का आलम हो,

या खुशी दीवाना कर जाए

बिन कुछ कहे बिना कुछ सुने ही

यह दिल की बात कह जाएंगे।

आंसू की नन्ही बूंद ये ही 

अफ़सना भी बन जाती है

बीती बातों को फिर ,

मन मंच पर लाती है

गिरने ना देना पलकों से वरना।

अपने सितम दिखाएंगे।

खुद के लिए ये मोती हो, 

दुनियां के लिए ये पानी है

कोई मोल भाव नहीं हो सकता,

ना कीमत ही अनजानी है

रोक नहीं पाओगे तुम 

ये आंसू है बह जाएंगे

आंसू है बह जाएंगे,

आंसू है बह जायेंगे।

सरिता प्रजापति,

दिल्ली