ओस की वो बूंदें तुम्हारी ही
तरह लगतीं हैं भीगीं भीगी सी
हरश्रृंगार की यह खुशबू भर देती है
तुम्हारे आंचल मेंं भरे प्रेम की तरह मन
सिन्दूरी डन्डियों पर सजते सफेद फूल
घर आंगन मेंं तुम्हारे ही लिए ही
स्वागतार्थ बिछे हैं,फूल राहों मेंं
आज तो आंसमा भी झुका झुका सा
लगता है सजदे मेंं तुम्हारे।
यह ठन्डे दिन भी चाहते हैं
तुम्हारे सांसों की वह गर्मी
जो तुमने संभाल कर रखी है
बडे़ अरसे से मेरे लिए।
वो सांझ भी अब वुढि़या गई है
झप्प अंधेरे से मेंं
अब उसके भी बाल निरे
सफेद हो आयें हैं ।
तुम्हारे विना यह खामोश
शामें लगती हैं युगों सी लम्बी
मैं देखता रहता हूँ तुम्हारी वही
तस्वीर जिसमें तुम्हारे बालों
ने लपेट रखा है उस समय को
जो तुमने मेरे साथ इन्हीं दिनों
विताया और कितना छोटा कर गई
लम्बी लम्बी रातों को।
चंद मिनटों की ठहरी ठहरी रात
सुबह कहाँ चली जाती ।
हमें खबर ही न होती
फिर ओंघते से दिन कितने
लम्बे और वोझिल हो आते
तुम्हें याद है न।
यू.एस.बरी,✍️
लश्कर,ग्वालियर,मध्यप्रदेश