मीनेश की रचनाएँ

             01

जीवन का सार समक्ष मगर

हम इसको स्वयं नकार रहे

है मनुज मनुज को जीत रहा

पर हम मानवता हार रहे

क्रूरता हृदय में लाकर हम

कर दानवता स्वीकार रहे

पीड़ा से औरों की अब न

नयनों से अश्रु धार बहे

जीवन का सार समक्ष मगर

हम इसको स्वयं नकार बने।

               02

जीवन में ऐसा मीत बनाओ,

जिससे उर की सब व्यथा कहो।

वह भी लगे अधूरा तुम बिन,

तुम भी उसके बिन पूर्ण न हो।

हो पीड़ा तेरे हृदय में पर,

उसके नैनों से अश्क बहें,

अधरों से जब तू मुस्काए,

तब उसका हृदय प्रफुल्लित हो।

वह मौन तुम्हारा समझ सके,

शब्दों से तुम कुछ भी न कहो,

जीवन में ऐसा मीत चुनो,

जिससे उर की सब व्यथा 

              03

जो स्वप्न सजाया था हमने,

आओ मिलकर साकार करें।

मुश्किल कोई हो झुके नहीं,

हंसकर मुश्किल स्वीकार करें।

साहिल न बनें लहरें बन कर,

हम चट्टानों पर वार करें।

हो अत्याचारी लाख बड़ा,

डट कर उसका प्रतिकार करें।

जो स्वप्न सजाया था हमने,

आओ मिलकर साकार करें।

               04

कभी पीर वाणी लिखा कीजिए,

सिसकती कहानी लिखा कीजिए।

न उजड़े कहीं घर किसी का कभी,

खुदा से यही बस दुआ कीजिए।

यह माना कि है गमजदा जिंदगी,

कुछ पल उन गमों को भुला दीजिए।

है प्यारी बहुत मासूमों की हंसी,

आप भी उनके संग मुस्कुरा दीजिए।

मीनेश चौहान ‘मीन’

फर्रुखाबाद-उत्तर प्रदेश