कुछ उधेड़ रहे हैं कुछ बुन रहे हैं

कुछ उधेड़ रहे हैं कुछ बुन रहे हैंl

कुछ उधेड़ रहे हैं कुछ बुन रहे हैं,

वो ख़ामोशी से सबकी सुन रहे हैं ।

जशन है कुछ एक दूशरे के गले मिल रहे हैं

वो ख़ामोशी से खुदा की खिदमत चुन रहे है।

कुछ रंजिशे कुछ शाजिशे बुन रहे है

वो खामोशी से फजर की अजान सुन रहे है।

कुछ मोहब्बत की दस्ताने सुन रहे है

वो चुपचाप मजार की चादर बुन रहे है।

रसूख वाले दौलत का जरिया चुन रहे है,

वो दरवेश की बातें करिश्माई सुन रहे है।

दौलत वाले शोहरत के लिए सर धुन रहे है

वो मन्दिर में माला के लिए फूल चुन रहे है।

कुछ पश्चिम में फटे बम का रुदन सुन रहे है,

हुक्मरान बदले की आग में, कलम के सर चुन रहे है,

दिखते एक हैं, पर ये कुछ बुन रहे वो कुछ गुन रहे है

वो ख़ामोशी से किस्मत का ताना बॉना बुन  रहे है।।

कुछ अपना सियासी नया लीडर चुन रहे है,

वो ख़ामोशी से उनकी कमजोर नब्ज़ चुन रहे है

कुछ अपनी सुना रहे कुछ अपनी सुन रहे है

 वो ख़ामोशी से रहबर का पैगाम सुन रहे है।।

कुछ एलान जंग का फ़रमान सुन रहे है,

वो ख़ामोशी से अमन की राह चुन रहे हैं।।

संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़ 9009415415