मालती ,देख तो रघु को …उसकी चमड़ी कैसी रुखी- रुखी लग रही है,अब ठंडी हवा चल रही है जो शरीर की नमी खींच लेगी…इसलिए चिकनाई जरुरी है ।
शरीर पर तेल लगा दिया करो…
मालती को मालकिन रमा के कहे शब्द से होश आया था ….रघु का शरीर सच में सूखा सा था।
महानगर की हर चीज इतनी भगाती है कि दौड़ कर भी पकड़ पाना संभव नहीं।
और फिर हम दो माँ -बेटे का तीसरा सहारा भी तो कोई नही।
अब रमा को कैसे समझाए कि दिनों -दिन आसमान छुती कीमत में तेल लगाया जाय या खाया जाय,इतनी ही तो ला पाती है कि दो वक्त की सब्जी और छौंक लग पाए।
तेल का रोना हम दोनों ही रोते है..भले आपकी तेल और हमारी तेल की जरुरत अलग -अलग है।
वो तो भला हो कि इस दीपावली में लोगों ने जो दिए घर के नजदीक वाले पीपल के पेड़ के नीचे जलाए थे …सुबह तड़के उन सभी से तेल निकाल लाई थी ।
करीब हफ्तेभर तो चल ही जाएगी।
सपना चन्द्रा
कहलगाँव भागलपुर बिहार