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इस समय के पृष्ठ पर
बस कुटिल रेखाएं उभरतीं
शब्द सारे चुक गये-से
कुछ लिखा जाता नहीं क्यों ?
शोर है
आवाज़ इसमें दब गई है
छंद गूंगा
अनमनी लय
गीत में गति ही नहीं है
पत्थरों के बीच
आहें भर रहीं संवेदनाएं
चीखता हर एक पौधा
एक पाँखी भी इधर
आता नहीं क्यों ?
साँस है
पर प्राण का स्पंदन नहीं है
स्वेद लथपथ
भागता पथ
पर दिशा-चिंतन नहीं है
झूठ बर्बर आक्रमण-रत
सत्य जख्मी
घाव रिसते
खून से झीलें लबालब
मानवी विश्वास को आधार
मिल पाता नहीं क्यों ?
शब्द सारे चुक गये-से
कुछ लिखा जाता नहीं क्यों ?
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-दुर्गाप्रसाद झाला .
मो. 9407381651 .
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