सुलगती दिलों का कोई अरमान दे दो ।
मुझे मेरे हिस्से का वो आसमान दे दो ।।
ज़र्रा ज़र्रा बिखर सा गया हूं जिंदगी में ,
मेरे अंदर भी एक नायाब इंसान दे दो ।
ताज़ नहीं साज़ नहीं कोई अंदाज नहीं ,
भरी महफिल में मुझे भी सम्मान दे दो ।
किस जादूगर का कमाल होगा जहां में ,
ऐसी जादू की छड़ी हमें भी वरदान दे दो।
ना जाने कौन सी गम में खामोश है जुबां ,
जहां में आया हूं तो मुझे भी जुबान दे दो ।
वक्त भी अपना कोई चाल चल गया शायद ,
मुकम्मल जहां में मुकम्मल पहचान दे दो ।
सुलगती दिलों का कोई अरमान दे दो ।
मुझे मेरे हिस्से का वो आसमान दे दो ।।
मनोज शाह मानस
सुदर्शन पार्क,
नई दिल्ली