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आखिरकार आंदोलनजीवी फिर किसान साबित हो ही गये। देश के सबसे बड़े और लंबे चले इस महाआंदोलन ने साबित कर ही दिया कि कुंभकर्ण को भी जगाया जा सकता है, हठधर्मिता का कीड़ा कितना ही अड़ियल हो उसकी तानाशाही को कुचला भी जा सकता है। वास्तव में जो प्रचारित किया जा रहा था उन सारे झूठ को कृषि बिल वापस लेने की घोषणा ने विराम तो दे दिया है पर झूठ पर चल रहे इस देश की सरकार इस बिल वापसी की घोषणा पर कितना खुद की पीठ थापथपायेगी यह आनेवाला समय खुद ही बता देगा।
खुशी इस बात की है कि जिन्हें आतंकवादी साबित करने पर मंत्री सन्तरी और सरकारि तन्त्र के साथ भांड मीडिया लगी हुई थी वो अन्नदाताओं को तो आतंकवादी नहीं बना पाये पर स्वयं जनविरोधी जरूर साबित हो गये है। कृषि बिल को वापस लेना कोई सरकारी दान नहीं है अपितु किसानों का हक़ था जो उन्हें मिलना ही चाहिये था इसलिये मुझसे यह अपेक्षा करना व्यर्थ है कि में इस बिल वापसी की घोषणा पर सरकार की या उसके मुखिया की प्रशंसा करूँगा। पर यह अवश्य कहूँगा की हठधर्मिता त्यागने में सरकार ने बहुत देर कर दी। गुरुनानक जयंती पर बिल वापसी की घोषणा से पंजाब के किसान वोटों की तरफ जो काग दृष्टि प्रधान ने साधी है उसमें जनहित नहीं हो कर स्वहित निहितार्थ है।
थूक कर चाटने की कला में सिद्धहस्त वर्तमान महान नेताओं की जमात में यह बिल वापसी कोई आश्चर्यजनक घटना तो कदापि नहीं है। जिस देश में आजादी को भीख माना जाता हो, और उसको प्रचारित करने वाले विक्षिप्त शख्स को पद्मश्री प्रदान की जाती हो, जिस देश मैं वैक्सीन पर प्रधान का फोटो चिपकाकर उसे भी भीख बताया जाता हो, उस देश के कर्णधारों की मानसिक स्थिति का अंदाजा सहज ही कोई भी समझदार इंसान समझ सकता है।
बहराल देश के किसानों को बधाई की उन्होंने अनुशासित आंदोलन को महीनों विपरीत परिस्थितियों में भी अनवरत चलाये रखा और एक सीख देश को दी कि एकता में वो शक्ति होती है जिसके दम पर रावण का किला भी भेदा जा सकता है। अब देश को आवश्यता है ऐसे ही वृहद जन आंदोलन की जिसमें महँगाई, बेरोजगारी मुद्दे हो और वह आंदोलन देशव्यापी हो। क्योंकि जनता सहने के लिये नहीं बनी है ना कि नेता अत्याचार के लिये बने है पर जनता की चुप्पी ने नेताओं को तानाशाह और स्वयं खुद को बेचारा बना के रख दिया है। किसान आंदोलन की सफलता से सबक लेते हुए अब उठ खड़े होना है। अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिये हमें अब ऐसा जन आंदोलन करना ही होगा जिससे अहंकारी और हठधर्मिता का सिर झुके और हाथ झोड़कर वह स्वयं बोले कि मुझसे गलती हो गयी मैं देश चलाने में असमर्थ हूँ और फिर से इस देश में लोकतंत्र बहाल करता हूँ। तब किसानों के साथ आमजन भी खुशियाँ मनायेंगे और भारत की वर्तमान गुलामी से मुक्त हो पायेंगे।
✍ शेखर