जीवन में ज्यादा खमोश रहना भी ठीक नहीं होता। कोई भी बात एक सीमा तक सुनी और स़हन की जा सकती है, परंतु यदि वह बार बार और रोज़ाना ही कही जाती है तो यह पति के लिए तो असहनीय होती ही है, उस पत्नी के लिए भी ठीक नहीं होती जो रोजाना अपने पति से लड़ती झगड़ती और उसमें मीन मेख निकाल कर उसे ज़ली़ल और प्रताड़ित कर यह समझती है कि वह बहुत अच्छा काम कर रही है। यह उसके द़िमाग़ के दीवालिएपन के अलावा और क्या हो सकता है।
निखिल अपनी अपनी पत्नी अवनि से इसी बात पर रूष्ट रहता था, किंतु वह उसे बजाय समझाने के खामोशी धारण कर लेता था। उसके इस व्यवहार से अवनि और चिढ़ जाती।
एक दो बार अवनि को निखिल ने समझाने की कोशिश की तो वह उलटे उसी को दोष देती हुई उसे बुरा भला कहने लगी। इससे बात बिगड़ गयी और पति पत्नी में झगड़ा हो गया, जिसकी परिणति अवनि के अपने मायके जाकर हुई।
यह कोई एक दो दिन की बात नहीं थी। अक्सर पति पत्नी में किसी न किसी बात को लेकर विवाद होता ही रहता था।
निखिल और अवनि ने यद्पि एकदूसरे को देख और समझ कर विवाह किया था, परंतु यह बहुत बाद में पता चला कि इस विवाह के पीछे अवनि की कम और उसके माता पिता का हाथ ज्यादा था।
निखिल एक बैंक में आफिसर था। उसका पद और वेतन देख कर अवनि के माता पिता ने अवनि को समझाया कि वह भले ही मन से निखिल को न चाहती और पसंद करती हो, परंतु जीवन के लिए सबसे जरूरी होता है पैसा। फिर निखिल एक आफिसर है, जिसका अलग ही रूतबा और प्रभाव होता है। इसलिए तुम निखिल से विवाह कर लोगी तो जीवन भर सुखी रहोगी और कभी रूपये पैसे की कमी नहीं रहेगी।
अवनि ने आपने माता पिता की इस समझाईश पर गौ़र किया और अपनी स्वीकृति दे दो। इस प्रकार निखिल से अवनि का विवाह हो गया। यह एक प्रकार से प्रेम विवाह होकर भी पारंपरिक और पारिवारिक स्वीकृति पर आधारित विवाह था।
शायद मन से अवनि ने यह विवाह नहीं किया था। इसी कारण वह यदा कदा अपनी नाराज़ी निखिल पर प्रकट करती रहती थी। निखिल इसे अपनी क़मजोरी या कमी समझता और सुन लेता। वह यह महसूस करने लगा था की अवनि को नाराज़ रख कर वह अपने दाम्पत्य जीवन को सुखी नहीं रख पाएगा, इस कारण वह अवनि को ज्यादा से ज्यादा खुश रखना चाहता था। वह अवनि की हर बात और हर इच्छा को पूरी करने का प्रयास करता।
अवनि ने अपने पति के वेतन पर अपना पूरा अधिकार जमा रखा था। वह अपनी मनमर्जी से खर्च करती और अपने मौज़ शौक पूरे करती। फैशन और सोशल मीडिया से उसका कुछ ज्यादा ही रूझान था। इस कारण वह अपना अधिकांश समय अपने मोबाइल पर बातचीत करके ग़ुजारती थी।
निखिल यह सब जानते और समझते हुए भी उसे कुछ नहीं कहता था। अवनि ने अपने माता पिता और भाई बहनों के खर्च के लिए अलग से बैंक में खाते खुलवा दिये थे, जिनमें वह अपने पति निखिल के वेतन से निकाल कर उनके खातों में जमा करवा देती थी।
निखिल के आपने माता पिता और भाई भाभी थे,म़ग़र वे दूसरे शहर में रहते थे। उन्हें यह बिलकुल पता नहीं था कि निखिल अपने दांपत्य जीवन में सुखी या दुखी है। परंतु जब निखिल एक दो बार आपने माता पिता और भाई भाभियों से मिलने आया तब हल्की सी बात मालूम पड़ी कि अवनि उसके प्रति अच्छा व्यवहार नहीं कर रही है।
जब जब अवनि निखिल से लड़ झगड़ कर आपने मायके जाती तब निखिल के भाईयों को पता चल जाता। इसकी चर्चा घर में होने पर सबको पता चल जाता।
कुछ दिनों बाद जब निखिल अवनि को लेकर अपने माता पिता से मिलने आया, तब दौनों ने अवनि को समझाया और अच्छे से रहने के लिए कहा। परंतु अवनि दिखावे के लिए उस समय तो हां करदी, परंतु अपने घर जाकर वह उसी तरह से निखिल को ज़लील करने लगी।
अवनि की इन ह़रकतों के बारे में निखिल ने कभी किसी के सामने जिक्र नहीं किया। न कभी अपने निकटतम और घनिष्ठ मित्रों को बताया न अपने परिवार के किसी सदस्य को। उसके साथ हंसी खुशी के क्षण बिताने वाले भाई भाभियों को भी कभी नहीं बताया न कभी बातचीत में इसका जिक्र ही किया। वह खुद ही मन ही मन घुटता रहा, परेशान और दुखी होता रहा।
निखिल के चेहरे पर उदासी, चिंता की लकीरें बहुत कुछ सामने वाले को बयान कर देती हैं। जब निखिल के बैंक के साथी उससे उसकी इस दशा का पूछे तो वह टाल जाता। सच को छिपा जाता। सब जानते थे कि कोई न कोई ऐसी बात है जिसे निखिल बताना नहीं चाहता।
कैई भी पत्नी अपने पति का हर हाल में हर दिन में अच्छे बुरे में पूरा पूरा साथ निभाती है। यही भारतीय नारी की विशेषता भी है और गुण भी है, परंतु अवनि के अपने पति से ढेरों शिकायतें थी। वह एक पत्नी की तरह तो कभी उसने सीधे मुंह उससे बात ही नहीं की।
अवनि के इस व्यवहार से निखिल ग़हरे सोच में डूब गया। उसे अब यह एहसास हो गया कि उसने अवनि को पत्नी बना कर बहुत बड़ी गलती कर दी, परंतु अब इसका परिमार्जन किया जाना संभव नहीं था। वह यही सोचता था कि एक न एक दिन अवनि को अपने किये पर पश्चाताप होगा और वह सही मार्ग पर आ जाएगी।
निखिल ने एख बार अपने सास ससुर से भी यह बात कही तो वे निखिल पर ही बरस पड़े और उसे भला बुरा करने लगे। निखिल इससे बड़ा दुख हुआ। उसे हर कहीं से अपमानित होना पड़ रहा था। जिनसे उसे साहस, हिम्मत और भरोसा मिल सकता था, उनसे वह कोई बात नहीं करता था और आपबीती बताना नहीं चाहता था। उसके माता पिता, भाई भाभी उसे हर तरह से पूछते कि आखिर बात क्या है, तुम हमें सच सच बता दो तो उसका रास्ता भी निकाल लेंगें, लेकिन बिना बताए हम कुछ नहीं कर पाएंगें।
निखिल ने तो जैसे किसी को कुछ न बताने की ठान रखी थी। उसने अपने परिवार वालों, नाते रिश्तेदारों और अपने घनिष्ठ मित्रों को कभी कुछ न बताया।
इसी टेंशन और अवसाद में एक दिन वह अपनी रूठी हुई पत्नी को मनाने और उसे वापस अपने घर ले जाने के लिए अपने ससुराल जा रहा था कि अचानक एक बड़े वाहन जो की फुल स्पीड से उसके पीछे चला आ रहा था, अचानक जोर की टक्कर मार कर चला गया।
निखिल अपने वाहन मोटरसाइकिल से गिर पड़ा। गिरते ही उसका सिर फट गया। घर और परिवारजनों को जब मालूम पड़ा तो उसे लेकर हास्पिटल ले गये। महीना भर उसका ईलाज चलता रहा। इस बीच भी अवनि और उसके परिवार वालों का व्यवहार ठीक नहीं रहा।
इलाज के दौरान निखिल अपने गले में लगी सांस नली के कारण बोल नहीं पाता था,फिर भी वह अस्पष्ट शब्दों में कहता रहा -” मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी..! मैं बहुत पछता रहा हूं.. बहुत पछता रहा हूँ..! “
निखिल के इन शब्दों से परिवार का हर सदस्य यह समझ गया कि निखिल यह सब किसके लिए कह रहा है, परंतु अब बहुत देर हो चुकी थी।
अपने मन में अनेकों बातें और विचारों को लिए निखिल आखिर इस संसार से विदा हो गया। परिवार के लोग बिलख बिलख पड़े। एक जवान बेटे की असामयिक मौत को हर किसी का दिल द़हला रही थी।
निखिल के मां बाप और भाग भाभी के आँसू थम नहीं रहे थे। सबके मन में बस एक ही प्रश्न बार बार उठ रहा था निखिल ने अपने मन की ऊहापोह, तड़प, पीड़ा और तनाव को आखिर पहले क्यों नहीं बताया ..पहले क्यों नहीं बताया..!
निखिल की खामोशी की सज़ा न केवल निखिल के मां बाप भोग रहे हैं, अपितु उसके भाई भाभी, नाते रिश्तेदार और उसके मित्र भी भोग रहे हैं..!
‘ ईश-कृपा ‘
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डाॅ. रमेशचंद्र
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