बाम्बे जैसे व्यस्त शहर में कहां किसी के पास टाईम, बस बस लगे पड़े आपा धोपी में, कोई सड़क पर पड़ा मर भी रहा तो एसा जाते मैडम जी जैसे इंसान ही न हो कोई, इंसानियत तो मर जाती बाम्बे में रहने वाले लोगो में। क्या हुआ कमला बाई अब आज किसके साथ क्या हुआ सरोज पूछ बैठी कमला से, कमला सात साल से सरोज के घर का काम काज करती थी रोज़ आती और सरोज को भी जैसे सुकून आता कि चलो दो घंण्टे कोई तो उसके संग बतियाने वाला है। सरोज बाम्बे में अकेली रहती थी, पति आठ साल पहले मर गये, एक बेटा वो भी विदेश में ही रच बस गया। सरोज अकेले ही रहती थी बेटा पैसा भेजता रहता और सरोज को कहता आराम से रह मां कोई काम न करना तुम, कमला है ना , कमला सरोज को बताई मैडम जी आज एक भिखारी चौराहे पर ही रात में मर गया सुबह सात बजे से उसकी लाश वहीं पड़ी पर न नगर निगम वाले आए और लोग पास से एसे गुजर रहे जैसे कुछ हुआ ही नहीं सामाजिक संस्थाओं में से भी कोई हाथ लगाने को नहीं। बस सब पत्थर दिल हो गये हैं लोग मैडम हम गरीबों की औकात नहीं की किसी भिखारी को भी कफ़न मुहयया करवा सकें। दुख हो रहा बस सोच सोच के मैडम। सरोज तभी बोल उठी कमला चल अब एक काम कर अदरक वाली दो कप चाय बना ले हम दोनों पीते हैं। सरोज के पास कमला के सवालों का कोई जवाब नहीं था इसलिए कमला को चाय बनाने का काम देकर गलियारे में जा बैठी।
वीना आडवानी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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