एक परिंदा ऐसा भी..!

है देखा मैंने एक परिंदा ऐसा भी

सबको सीखाता है जीना वो

पर! भूल गया है खुद जीना

यादों की बैचेनी मन में लिए

कौस रहा है अतीत अपना

न खौफ उसे मरने का है 

न ही जीने की लालसा।।

है देखा मैंने एक परिंदा ऐसा भी

उङ रहा है निस-दिन नभ में

पर! है नहीं तलाश उसे किसी की

अतीत के पन्ने पलटकर अपने

क्यों? घाव हरे मन के करता है।।

है देखा मैंने एक परिंदा ऐसा भी

मन का कितना सच्चा है वो

पर! राज कई दफन हैं उसके

मिल रहा न मन को सुकुन कहीं 

है देखा मैंने एक परिंदा ऐसा भी।।

नीतू कुमारी पुत्री मनीराम

छात्रा रामकुमारी कॉलेज

मु.पो. कसेरू,झुन्झुनू राज.