खामोश मुस्कान

बहुत सोचा था

कि चुप रहेंगे

भरी अंजुमन में

कुछ न कहेंगे

मगर हमारी….,,,

एक ख़ामोश मुस्कान ने

हाल-ए-दिल बयां कर दिया

लाख रोका था खुद को

दिल में उठते जज़्बात को

आंखों में तैरते सैलाब को

मगर हमारी…,,,

एक ख़ामोश मुस्कान ने

चेहरे की उदासियों को

जग जाहिर कर दिया

जानते थे महफ़िल में

कोई अपना न था

गैरों के काफ़िले से उठकर

किसी एक शक्स की पहचान से

बेगानों में रुसवाईयों का

आलम छा गया

हमारी एक ख़ामोश मुस्कान ने

आंखों में कैद ख्वाबों को

बहते अश्कों में बेकाबू कर दिया।

डॉ.मंजू वर्मा (भूतपूर्व प्रोफेसर, यू .एस.ओ.एल. पंजाब विश्विद्यालय, चंडीगढ़)