संजीव-नी|

दर्द की भी अपनी ही अदा है|

दर्द की भी अपनी ही अदा है

वह सहने वालों पर फिदा है,

मुस्कुराने की कोई वजह नहीं होती,

फकत निशानी,कि  इंसान जिंदा है|

नन्हे नन्हे हाथों को सिर्फ छू कर देखो,

महसूस होगा,उनकी छुअन में खुदा है|

क्यों लगते हो गले सरे आम,

जब दिल से दिल जुदा है|

एक निराश माँ ने खुदगर्ज बेटे से कहा,

सदा खुश रहे तू, मेरी दिल से दुआ है|

छोड़ो ख्वाहिशें चकाचौंध, चला जा,

उस बस्ती की टूटी दीवारों में भी खुदा है|

ऐसी जगह जिंदगी गुजर जाए भी तो क्या,

जहां आदमी आदमी से ही जुदा है|

संजीव ठाकुर,15, रिक्रिएशन रोड

चोबे कालोनी, रायपुर छ.ग.

62664 19992, 9009415415.