नई दिल्ली । देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमण ने कहा कि विधायिका कानूनों के असर का अध्ययन किए बिना ही कानून पारित कर रही है, जो एक बड़ी समस्या बनने वाली है। इस मामले में चैक बाउंसिंग (धारा 138) से जुड़े मामलों का उदाहरण लिया जा सकता है। संसद ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट को आपराधिक बना दिया, लेकिन यह नहीं देखा कि इससे मजिस्ट्रेट अदालतें बेहद दबाव में आ गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण यहां संविधान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम के समापन मौके पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मौजूदा अदालतों को ही कॉमर्शियल कोर्ट में तब्दील किया जा रहा है, लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। ये कार्यवाही मामलों के बोझ को कम करने में सहायक नहीं है। उन्होंने कहा कि मामलों के बोझ का मुद्दा कई पहलुओं वाला है। इसे न्यायपालिका के बल पर ही कम नहीं किया जा सकता। उन्होंने सरकार से आह्वान किया कि पिछले दो दिनों में दिए गए सुझावों पर गौर करें, जिससे मौजूदा मुद्दों का समाधान किया जा सके। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह उपभोक्ता संरक्षण कानून, 2019 के असर का अध्ययन करे। कोर्ट ने यह माना था कि जिला उपभोक्ता मंचों की आर्थिक सीमा बढ़ाने से उनमें मुकदमों का बोझ बहुत ज्यादा हो गया है। शक्रवार को अटॉर्नी जनरल की ओर से सुझाव दिया गया था कि सुप्रीम कोर्ट को क्षेत्रीय अपील अदालतें गठित करनी चाहिए, जिससे शीर्ष अदालत में पेंडेंसी की अवधि कम हो और न्यायालय संवैधानिक मुद्दों पर गौर कर सके। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अटॉर्नी जनरल ने न्यायपालिका के पुनर्गठन का मामला उठाया है। यह मामला सरकार के लिए विचार करने का है। उन्हें नहीं लगता कि आजादी के बाद न्यायपालिका के ढांचे में बदलाव पर कोई गंभीर विचार किया गया है। मुख्य न्यायाधीश ने मुकदमों के स्थगन और अपराधियों को उदार रूप से बरी करने के आरोपों का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि वास्तविकता यह है कि इस मामले में सरकारी अभियोजन, वकीलों और सभी पक्षों को न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग करना चाहिए। असहयोग, त्रुटिपूर्ण जांच और प्रक्रियागत खामियों के लिए न्यायालय को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है। केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने संविधान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि केंद्र सरकार ने न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 9000 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की है। उन्होंने न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर देने के लिए मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिए गए सुझावों पर ध्यान दिया है। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में वह बताना चाहते हैं कि सरकार न्यायपालिका के लिए ढांचागत सुविधाओं के विकास के लिए प्रायोजित योजना की निरंतरता पर पूरी तरह गंभीर है।