गीत

है बालू के ढेर यहाँ पर ,

मरुथल जैसा जीवन !!

धार पसीने की बहती है ,

सूखी सूखी जाती !

जिनकी मुट्ठी में रुपया है ,

बैठे अपनी छाती !

मर मर कर हम रोज जी रहे ,

यह कैसा संजीवन !!

आँखों में आँसू कब ठहरे ,

पाहुन जैसे आते !

पल भर की खुशियाँ मिल जाये ,

आसमान छू आते !

वसन सरीखे फटे भाग हैं ,

सीते उधड़ी सीवन !!

रोज कुलाँचे मन भरता है ,

हम मरीचिका जानें !

पल पल में बदला करते हैं ,

जीने के पैमाने !!

युग सामंती चले गये पर ,

व्यथा घटी ना श्रीमन !!

बृज व्यास 

शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

9425428598