तुम स्त्री हो तो क्या हुआ,
मैं तुम्हे मित्र बना सकता हूँ।
दिल के एक कोने में तुम्हारा,
पवित्र सा चित्र बना सकता हूँ।
सुनो तुम स्त्री हो तो क्या हुआ।
मैं तुम्हे मित्र बना सकता हु।।
होती होगी पीड़ा तुम्हे बहुत,
जब कोई तुम्हारे शरीर के खातिर तुम्हारे पास आता है।
सहती हो दर्द तुम औरत होने का,
जब कोई तुम्हारे जज़बातों से खेल जाता है।
तो सुनो
तुम्हारी रूह को,
अपने दिल मे बसा सकता हुँ।
बिना किसी ख्वाहिश के,
तुम्हारा साथ निभा सकता हुँ।
तुम स्त्री हो तो क्या हुआ,
मैं तुम्हे अपना मित्र बना सकता हुँ।
चाहती हो तुम की कोई हो,
जिसके साथ तुम खुलकर जी सको।
ऐसा रिश्ता जो मोहब्बत से भी बढ़कर हो,
जिस रिश्ते में तुम खुशियों के,
एहसास सी सको।
तो सुनो,
तुम्हे देर रात बिना किसी डर के,
हाथ पकड़ के घुमा सकता हुँ।
उठाए कोई सवाल अगर हमारे रिश्ते पर,
तुम मेरी मित्र हो गर्व से दुनिया,
को बता सकता हुँ।
तुम स्त्री हो तो क्या हुआ।
मैं तुम्हे मित्र बना सकता हुँ।।
पंकज शर्मा “पीयूष”
दादरी
ग्रेटर नोएडा