।।सिंदूरी शाम।।

धूप को समेटे सिंदूरी शाम दे चला।

मैं अपनी तपन साथ अपने ले चला।।

आँखों में भरके ख्वाब परियों के गाँव में।

 सूकून से सो जाना तुम, तारों की छांव में।

विश्राम नही मिलता,मैं कहीं ठहरता नही।

लेने सुनहरी भोर फिर तुम्हारे लिए चला।

धूप को समेटे सिन्दूरी शाम दे चला।

बाहों में कटेगी याकि यादों में कटेगी।

ये रात अन्धेरी है मगर फिर भी कटेगी।

उम्मीदों भरी भोर, कल फिर जगायेगी।

गुम हैं जो अंधेरों में, राह दिखाने उन्हें चला।

धूप को समेटे सिन्दूरी शाम दे चला ।

मोहक बड़ा मादक है ये चांद तुम्हारा।

छुपता है निकलता है, कभी खुलके चमकता।

सब ताकते हैं इसको जमी पर नही आता।

प्रेम के गीत हैं इसके, तपन भरी मेरी गाथा।

चाँद को छोड़ तुम्हारे आँगन में, मैं चला।

धूप को समेटे सिन्दूरी शाम दे चला।

मैं अपनी तपन साथ, अपने ले चला।।

                     अम्बिका प्रदीप शर्मा

                      सिवनी मध्यप्रदेश