बेबी को बेब्स पसंद है

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एक बड़ा ही लोकप्रिय गाना है l  बेबी को बेब्स पसंद है l  लेकिन,  बेबी को जो पसंद है  l उसे या उसकी पसंद को आप शादी के बाद नकार नहीं सकते l बेबी को अगर सफेद  रंग पसंद है l तो आप मजबूरी में उसकी हाँ में हाँ मिलाते हैं l

यदि आपकी बेबी चुड़ैल की तरह दिखती हो l तो भी आपको उसके पहनावे को लेकर यही कहना पड़ता है l कि बेबी तुम सफेद टाॅप में मलाईका अरोड़ा या सनी लियोनी ही लग रही हो l या आप ऐसे भी कह सकतें हैं कि स्वर्ग की परी भी तुम्हारे इस परिधान के आगे पानी भरती फिरेगी l फिर, देखिये आप को सुखी रोटी और चटनी की जगह पुरी और मटर पनीर कैसे मिलती है  l आदमी को शादी से पहले अगर करैला पसंद नहीं होता l वही आदमी  आपको शादी के बाद  करैले के फायदे गिनवाता हुआ दिखाई देता है  l  इसी तरह कपड़े की बात की जाये तो आदमी को अगर सफेद कमीज पहनने की चाह हो l तो उसके स्मरण शक्ति जो प्रायः घर के टँटों से लोप हो जाती है l  और, असमय ही सिर के बालों के बीच से चाँद दिखाई देने लगता  है l  तत्क्षण ही अश्वमेघ के   छोड़े गये घोड़ों की तरह नमूदार हो जाती है l और श्रीमती जी की मुखाकृति  और तनी हुई भृकुटि साफ दृष्टि गोचर होने लगती है  l  और हम सफेद की जगह नीले या काले कमीज को प्राथमिकता देने लगते हैं l  पसंद ना पसंद जैसी हर बात  शादी के बाद बेमानी हो जाती है l  आप पटल खायेंगे या बैंगन ये आपकी बेबी ही तय करती है l  बेबी के आगे बडे़ – बड़े ओहदेदार और थानेदार जिनके आगे बड़े – बड़े अपराधी भी पैंट में पेशाब कर देते हैं l  उनकी पैंट भी बेबी के आगे ढ़ीली हो जाती है l  बड़े- बड़े जज से लेकर मैजिस्ट्रेट तक जो मिनटों में अपराधी को फाँसी या उम्रकैद की सजा दे देतें हैं l  वो, भी अपनी बेबी के डर से टमाटर के ठेले पर टमाटर को ऊँगलियों से टटोल- टटोल कर खरीदतें हैं l   कि कहीं घर जाने के बाद बेबी द्वारा डपटे ना जाएँ  l  कुछ लोग सब्जियाँ छूते – छूते और खरीदते – खरीदते   इसलिए रह भर जाते हैं l कि  भिंडी तुमने मँहगा खरीद लिया l  मैं होती तो चालीस रुपये की जगह बीस रुपये में ही खरीद लेती  l  बैंगन देखकर नहीं लेते अंदर कितना पिल्लू था  l  कद्दू बूढ़े क्यों ले लिये  l   पता नहीं  तुम्हें कब  सब्जी खरीदना आयेगा  l लोग तुमको बहुत आसानी से बेवकूफ बना देते हैं l

 या लोग तुमको ठग लेते हैं l मैजिस्ट्रेट साहब जो सालों ढ़िबरी  में बैठकर अध्ययन  करके इस मुकाम तक पहुँचे होते हैं l  मिनटों में बेवकूफ करार दे दिये जाते हैं l  प्रशासन के आला दर्जे के अधिकारी और थानेदार अपनी बेबी के सामने मूढ़ बन जाते हैं l कई- कई साहब जो दफ्तर में पानी तक निकाल कर नहीं पीते l  घर में बर्तन – झाडू कपड़े धोते हुए मिलेंगे l  गनीमत ये है कि ये सब पर्दे के पीछे होता है l और कोई प्रकट में देख नहीं पाता है l  नहीं तो साहब का रौब जनता – जनार्दन के बीच से गायब हो जाता  l

बड़े – बड़े डाॅक्टर –  इंजीनियर जिनके सलाह के बिना मरीज का भला नहीं हो सकता l   बड़े- बड़े पुल नहीं बन सकते l  वो भी चड्डी किस रंग की खरीदनी है l ये अपनी बेबी से पूछते हैं l  डाॅक्टर साहब नई कार या कपड़े खरीदते समय अपनी बेबी से सलाह  लेना ही उचित समझते हैं l अब कौन बाजार जाकर दूकानदार के सामने अपनी फजीहत करवाये  l  यह कहना कहीं से अतिशयोक्ति पूर्ण बात नहीं होगी कि संसार का पत्ता- पत्ता जो हिलता है  l वो ईश्वर  की मर्जी नहीं बल्कि बेबी की मर्जी से ही हिलता है l  बावजूद, इसके ये कहना ज्यादा उचित होगा कि कुछ पतिदेव ऐसा प्रेम से करतें हैं l  और कुछ बेलन के डर से l 

महेश कुमार केशरी 

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