देश विदेश में चमकेंगे मध्यप्रदेश के मोती

कृषि विवि के वैज्ञानिक सिखा रहे मोती की खेती के गुर
जबलपुर । अब मध्यप्रदेश में भी मोती की खेती करना आसान हो जायेगा। इसके लिये जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय के छिन्दवाड़ा कृषि विज्ञान केन्द्र में प्रशिक्षण केन्द्र खोला गया है। कुलपति डॉं. प्रदीप कुमार बिसेन ने यहां केन्द्र का दौरा किया और मोती पर हो रहे अनुसंधान और प्रशिक्षण का अवलोकन कर आवश्यक निर्देश दिये। डॉं. बिसेन ने बताया कि मोती की खेती कम लागत और कम श्रम में अधिक कमाई वाली खेती है। उन्होंने यहां कृषि ओपीडी एवं पोषण वाटिका का उद्घाटन भी किया। वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉं. सुरेन्द्र पन्नासे ने बताया कि यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नईदिल्ली की आदिवासी उपयोजना है। अब तक पंजाब, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश सहित देश के २०० से अधिक किसानों को मोती की खेती के लिये प्रशिक्षित किया गया है। कृषि एक्सपर्ट एवं कार्यक्रम सहायक श्रीमति चंचल भार्गव ने बताया की प्रति हेक्टेयर २० से ३० हजार सीप की दर से इनका पालन किया जा सकता है। १० वर्गफीट के तालाब में घर में भी इसकी खेती संभव है। इसे सीखने के लिये २ दिन का प्रषिक्षण पर्याप्त है। आज कल मोती की खेती चलन तेजी से बढ़ रहा है। देश के कुछ ही हिस्सों में इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है। छिन्दवाड़ा कृषि विज्ञान केन्द्र प्रदेष का एकमात्र मोती प्रशिक्षण केन्द्र है।
क्या है खास…………
खेती शुरू करने के लिए किसान को पहले तालाब, नदी आदि से सीपों को इकट्ठा करना होता है या फिर इन्हें खरीदा भी जा सकता है। इसके बाद प्रत्येक सीप में छोटी-सी शल्य क्रिया के बाद इसके भीतर चार से छह मिमी व्यास वाले साधारण गोल या डिजायनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध, पुष्प आकृति आदि डाले जाते हैं। फिर सीप को बंद किया जाता है। इन सीपों को नायलॉन बैग में २ दिनों तक एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा जाता है। रोजाना इनका निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों को हटा लिया जाता है। इन सीपों को तालाबों में डाल दिया जाता है। इसके लिए इन्हें नायलॉन बैगों में रखकर (दो सीप प्रति बैग) बांस के सहारे लटका दिया जाता है और तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है। अन्दर से निकलने वाला पदार्थ बीड के चारों ओर जमने लगता है जो अन्त में मोती का रूप लेता है। लगभग १२-१५ माह बाद सीप को चीरकर मोती निकाल लिया जाता है।
आजकल डिजायनर मोतियों को पसन्द किया जा रहा है जिनकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। भारतीय बाजार की अपेक्षा विदेशी बाजार में मोतियों का निर्यात कर काफी अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। सीप से मोती निकाल लेने के बाद सीप को भी बाजार में बेचा जा सकता है। सीप द्वारा कई सजावटी सामान तैयार किये जाते है। सीपों से कन्नौज में इत्र का तेल निकालने का काम भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। मृत सीपों का चूरा बनाकर कुक्कुट को देने से कैल्शियम की पूर्ति होती है। मोती धारण करने से गुस्से पर काबू रख सकने के साथ सर्दी जुकाम से भी राहत मिलती है।