गीत

विषमताओं में सांत्वना की

बातें प्रतीत होतीं हैं झूठी।

विडम्बनाओं में जीवन की

बाँसुरिया भी टूटी -फूटी।

कैसे अंतर धीर धरे अब

समय घाव गम्भीर करे अब

रोग ज्वर से पीड़ित जीवन

नित्य लगे है आज मरे अब

जीवन नौका फँसी भँवर में

भाग्य पतवार कर से छूटी।

विडम्बनाओं में जीवन की

बाँसुरिया भी टूटी फूटी…

पीर से छलनी है अंतर्मन

सुनते हैं हम करुण क्रंदन

एक अभिलाषा है अंतस की

शुष्क भूमि पर बरसे सावन

कर्म-भाग्य का खेल निराला

सदियों से किस्मत है रूठी।

विडम्बनाओं में जीवन की 

बाँसुरिया भी टूटी फूटी…

सुख दुख का मेला है जग में

लहू जम गया जैसे रग में

अजेय सिद्ध करो स्वयं को

सहस्र बाधाएँ हों मग में।

हर्ष-विषाद है जीवन गाथा

व्यथा-कथा है बड़ी अनूठी।

विडम्बनाओं में जीवन की

बाँसुरिया भी टूटी फूटी…

प्रीति चौधरी “मनोरमा”

जनपद बुलंदशहर

उत्तरप्रदेश