ग़ज़ल

बहुत आज  कल  लोग  इतरा रहे  हैं,

हकीकत  सभी  आज  झुठला  रहे हैं।

कटे पिछले दिन तो बड़ी मुश्किलों से,

पुराने   नए    ज़ख़्म   गहरा   रहे   हैं।

कहो आज दिल की नहीं कुछ छिपाओ,

सभी लोग  मन  अपना  बहला  रहे  हैं।

समय  की जरूरत, संभालो  खुदी को,

जरुरी   है   दूरी,  यूॅ॑    समझा   रहे  हैं।

तमन्ना  अभी  ताक  पर  सारी  रखिए,

बहादुर   वही   आज   कहला   रहे  हैं।

नागेन्द्र नाथ गुप्ता, ठाणे (मुंबई)