जो याद् तेरी शाम आई , नहीं जाती ,
जो याद् तेरी शाम आई , नहीं जाती ,
सूरज से भी बाती बुझाई नहीं जाती |
कोशिश तो सुबह शाम करता हूँ बराबर,
हाँ याद तेरी दिल से भुलाई नहीं जाती |
क्या है मक़ाम इश्क का पुछो मुझ ही से ,
ये आशिकी कोशिश से मिटाई नहीं जाती|
चाहे मोहब्बत को जो नाम दे जमाना,
ये ऐसी दास्ताँ है ,छुपाई नहीं जाती |
ये इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते,
तारीख लिख गई,जो मिटाई नहीं जाती |
ये आशिकी की ऐसी आग है मेरे यारों,
जो अब लगी है तो बुझाई नहीं जाती|
संजीव ठाकुर,अन्तराष्ट्रीय कवि, रायपुर छ.ग.
62664 19992, 9009415415.