अग़र सच कहूँ तो में ठीक हूँ।
वैसे तो उदास हूँ पर ठीक हूँ।
देखूँ तो मैं अपने आप में बहोत
खुश हूँ लेक़िन थोड़ा मजबूर हूं।
दुनियाभर के सवालों से में
अब छुप छुप कर चल रहा हूँ।
चेहरा अपना आईने के सामने
बदलता मैं हुआ देख रहा हूँ।
एक जमाने में अच्छा आदमी
था अब से में बुरा बन चुका हूँ।
अपने हालातों का ज़िम्मेदार
और कोई नही सिर्फ में हूँ।
अपने आपमे शराब हूँ सच
कहूँ तो एक बुरी बक़वास हूँ।
थक गया हूँ ज़िंदगी से लड़ते
लड़ते अब हारना चाहता हूँ।
मेरे शरीर से आज़ादी चाहता
हूँ सुकूँन भरी मौत चाहता हूँ।
नीक राजपूत