कुर्सी गाथा

 मान लिया जिसने यहाँ, कुर्सी को भगवान 

चमचे ही करते सदा ,उसका ही सम्मान 

कुर्सी जब से मिल गई, खोया सभी विवेक

 चाटुकार मिलने लगे, देखो उसे अनेक 

कुर्सी हाथ से छिटकी, मिली उसे जब हार

 मिलेंगे अब पग पर पर, देखो उसको खार 

मिल जाती कुर्सी तभी, पाता है अनुकूल

 फिर दूजों की राह में, उगाता है बबूल 

कुर्सी से भरता नहीं, रमेश जिसका पेट 

दिन-रात जुगाड़ करता, फिर करता है सेट

 कुर्सी की होती नहीं, कोई भी सी जात

 जिसको मिल जाती अगर, दिखलाता औकात

 कुर्सी अगर नहीं रही, छोड़ा सबने साथ

झुकाती है ये दुनिया, कुर्सी आगे माथ 

बिन कुर्सी रहे उनका ,मन बहुत ही उदास

 कुर्सी देकर ही सदा ,जगा रखे तू आस

 कुर्सी पाने तोड़ते ,जाति धर्म आधार

 प्रजातंत्र तो बन गया ,देख यहाँ लाचार

 कुर्सी जब से मिल गई ,होती है तकरार 

कौन जीतेगा इससे, देख रहा संसार 

कुर्सी पाकर जो करें,कुर्सी से व्यापार

 यह जगत सारा करता, उसकी जय-जयकार

 धर्म -मजहब में कुर्सी, करवाती है घात

 ऐसे नेता को लगा ,चुनाव पर तू लात 

बड़े भाग से तू बना, कुर्सी का अब बाप

 जब तक रहे खूब करें, रमेश इसका जाप 

कुर्सी पाते मिट गये,सारे दु:ख संताप

 अब कोई ना रहा, रमेश पश्चाताप 

कुर्सी तुझको मिल गई, अब क्यों रखता डाह 

दिन- रात ही क्यों भरता, उसके प्रति तू आह

 कुर्सी उसको मिल गई ,करता है अभिमान 

पाँव जमीन पर न पड़े ,भरता खूब उड़ान 

नेता रहता हारकर, देख कितना उदास

 कोई भी कुर्सी उसे, पहुँचा उसके पास 

कुर्सी हेतु नित पढ़ता ,गीता और कुरान 

शायद किस्मत के खुले ,रमेश रोशनदान

 कुर्सी जब से मिलगई ,उस पर बैठा ऊँभ

 पर ऊपरी आमदनी ,जल्दी लेता सूँघ

 कुर्सी के इस खेल में ,सभी की लगी साख

 हार गया जो भी यहाँ, हो जाती है राख

रमेश मनोहरा

 शीतला माता गली, जावरा जिला-रतलाम 457226 (म.प्र.) 

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