नीर की धार

पीर की टीस उठती रही हर घड़ी,

नीर की धार बहती रही हर घड़ी।

वो किसी की बहू थी बनी प्रेम से,

चाहती प्यार, बोलें न बातें कड़ी।

बेटियां  हैं बड़े भाग्य  से जन्मती,

पूजती हैं उन्हें तो न करिए खड़ी।

आपकी  ही तरह हैं दुलारी बड़ी,

प्रेम की चाह में,फिर बिलखती पड़ी।

मां-पिता ने उसे सौंप दी प्यार से,

आपभी अब दिखाएं सयानी घड़ी।

आज देखा उसे जब सिसकते हुए,

हूक ऐसी उठी मैं  रुआंसी  पड़ी।

आइए हम चलें  प्रेम की राह पर,

प्यार से ही बनाएं उसे फुलझड़ी।

अनुपम चतुर्वेदी, सन्त कबीर नगर, उ०प्र०