डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657
पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के जाने माने प्रोफेसर साहब अपने कुत्ते का पट्टा हाथ में पकड़े कक्षा में घुसे। वे कुछ कहते उनसे पहले उनका कुत्ता छात्रों पर भौंकने लगा। उन्होंने अपने कुत्ते को समझाया। फिर कहने लगे – आज हमारा टॉपिक है – ‘सरकार किसे कहते हैं?’ इस विषय को समझने के लिए पहले इस कुत्ते को समझना बहुत जरूरी है। या यूँ कहें कि यह कुत्ता ही सरकार है। दोनों में ज्यादा अंतर नहीं है। सरकार सामाजिक प्राणियों के चुनने से बनती है और कुत्ता अपनी हरकतों से। इसीलिए आज मैं अपने कुत्ते के साथ यहाँ आया हूँ। चूँकि यह मेरा पालतू है इसलिए मैंने इसका नाम ‘क, ख, ग’ रखा है। वैसे नाम रखना जरूरी नहीं था, लेकिन अपने इशारों पर नचाने के लिए रखना पड़ता है। नहीं तो यह कंफ्यूज हो जाएगा कि इसे किसके इशारे पर नाचना है। अच्छा तो मैं आपको सरकार का डेमो दिखाता हूँ। इसके लिए मैं इस कुत्ते के साथ जो-जो करता जाऊँ उसे ध्यान से देखिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इस कक्षा के बाद विश्वविद्यालय तो क्या सभी परीक्षाओं में आप ही टॉप करेंगे।
प्रोफेसर साहब ने कुत्ते को कुछ निर्देश दिए। उसके बाद छात्रों से प्रश्नोत्तर विधि में चर्चा शुरु की। उन्होंने एक छात्र से पूछा – बताओ मैंने पहले क्या किया? एक छात्र ने उत्तर देते हुए कहा – सर! सबसे पहले आपने उसे हमारे खिलाफ भड़काया। उस पर वह भौंकने लगा। फिर आपने उसका पट्टा ढीला किया तो वह हमारी ओर लपकने लगा। इससे पहले कि वह हमारी ओर लपकता आपने उसका पट्टा कसके पकड़ लिया।
बहुत बढ़िया। आप बैठ जाइए। बताइए कि इसके बाद मैंने क्या किया? – इतना कहते हुए प्रोफेसर साहब ने दूसरे छात्र को उठाया। दूसरे छात्र ने कहा – सर! जो कुत्ता कुछ देर पहले हम पर भौंक रहा था, लपकने के लिए उतावला हो रहा था, वही आपके साथ विपरीत व्यवहार कर रहा था। वह आपके जूतों को चाटने की कोशिश कर रहा था। आपके आँख दिखाने पर अपनी दुम दबा रहा था। पुचकारने पर दुम हिला रहा था। हाथ उठाने पर सिर नीचे करके अपना भय दिखा रहा था। लाख दुत्कारने पर भी आपके जूते चाट रहा था। कुल मिलाकर आपके इशारों पर नाच रहा था।
प्रोफेसर साहब छात्र के उत्तर से अधिक प्रसन्न नहीं हुए। उन्होंने कहा – ये सब तो छोटे बच्चे भी बता सकते हैं। इन सबका हमारे टॉपिक से क्या लेना-देना? आप सब विश्वविद्यालय के छात्र हैं। आप लोगों से मेरी अपेक्षाएँ कुछ और हैं। देखते हैं, मेरी अपेक्षा पर कौन खरा उतरता है।
तभी एक छात्र उठा। उसने कहा – सर! मैं समझ गया। आप यही बताना चाहते हैं कि आप उद्योगपति हैं और हम जनता हैं। आप जिस पर भौंकने के लिए कहेंगे कुत्ता उस पर भौंकेगा। जिसको काटने के लिए कहेंगे उसे काटेगा। किसे देखकर चुप रहना, किसे देखकर उछलना है, यह सब आपके हाथों में है।
उत्तर सुन सभी छात्र और प्रोफेसर साहब ताली बचाने लगे। लेकिन तभी उस छात्र ने एक ऐसा प्रश्न कर डाला कि सभी ताली बचाना छोड़ उसकी ओर देखने लगे। उसने पूछा – सर! हम सब मिलकर चाहें तो इस कुत्ते को मार सकते हैं, तब भला यह सरकार का प्रतिरूप कैसे हो सकता है?
छात्रों को लगा कि प्रोफेसर साहब क्लीन बोल्ड हो गए। किंतु प्रोफेसर साहब थे कि वे मुस्कुराने लगे। उन्होंने कहा – बात तो आपकी सही है। लेकिन मारने के लिए कुत्ता तो मिलना चाहिए न। यह मेरे आश्रय में रहता है। मेरे आश्रय में रहने वाला जनता की पहुँच से बहुत दूर होता है। मेरी फेंकी चंद बोटियों के लिए लिए जनता तो जनता, उनकी सात पुश्तों तक को नंगा कर देता है। इसका जीना-मरना सब मेरे हाथों में है। यह मेरे इशारे पर नाचता है, न कि आपके। जिस दिन आपके इशारे पर नाचने लगेगा, इसे पागल करार दिया जाएगा। फिर पागल कहलाने वाला किसी के हाथों मरे क्या फर्क पड़ता है। एक प्रतिशत अरबों की ललचाई बोटी रखने वाले उद्योगपति निन्यानबे प्रतिशत भूखे नंगों को लूटकर सौ प्रतिशत बनते हैं। यह बात कुत्ता भी भली-भांति जानता है कि दुम उसे नहीं हिलाती, बल्कि वह दुम को हिलाता है।
प्रोफेसर साहब का उत्तर सुन छात्रों की तालियाँ कक्षा में गूँज उठीं।