*सजनी साजन संग, छाया बसंत*

ठण्डी हवा सिरहन भरे हेमंत,

शिशीर कंपकंपाए तन बदन,

अलाव तापने का होवे मन,

ठिठुरन का हो नहीं आगाज,

सुरा, सुन्दरी का मिले साथ,

बदले चाल ठाल बदले  सूर,

यौवन है,ठंड का टूटे गुरूर,

समाए प्रियतम की बाहुपाश,

आस-पास ठंड हो नहीं आभास,

दोनों को लगी लगन,जगी अगन,

तन्मय हुए दोनों,एक दूजे में मगन,

सुवासित  बसंत,खिला मन सुमन,

चितचोर संग तन्मय,करें नव सृजन,

प्रित मधुमास का, प्रिय होवे नहींअंत,

प्रिय संग मधुरमिलन,सुख मिले अनंत,

सजनी संग साजन,चाहे,बनारहेबसंत।

        नंदकिशोर उपाध्याय’प्रबोधक’

         सरस्वती नगर’धार मध्य प्रदेश