ज़िंदगी, यही तो चाहा, कुछ पल को ही पास आके देखे तो कोई ,
माना मशगूल हो बहुत, समय से वो एक पल चुराके तो देखे कोई !!
हूं आसान मैं या उलझा हुआ, या नियति के आगे बेबस सा हुआ ,
मुझे एक बार इस ज़माने के “तौर-तरीके” सिखाके देखे तो कोई !!
पता है, यहां यूं ज़रा-जरा सी बात के बन जाते हैं “अफसाने” नये ,
हां,न कुछ कहो अब,अफसानों से ही “बात” बनाके देखे तो कोई !!
रोज़ वो दे आते हैं ज़माने को अपना “सारा कुछ” बिना कहे ही ,
पर वो जो “मेरा” है, मुझको “मेरे” ही से कुछ देके देखे तो कोई !!
पता है तुमको कि “रूठ” जाती हूं, कभी खुद से..कभी ज़माने से
“मान जाएंगे”, बस एक बार किसी हक से मनाके देखे तो कोई !!
सुनों, वक़्त ज़ाया क्यों करें, वो जो दिखे अब मुद्दतों के बाद मिले ,
छोड़ो शिकवे-शिकायत सभी, हद में भी बेहद होके देखे तो कोई !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
उत्तर प्रदेश , मेरठ