अकेले अकेले..

अकेले में कभी कभी 

अब मुस्कुराने लगी हूं।

खुद से रूबरू

 अब होने लगी हूँ।

थोड़ी सी बेपरवाह भी

अब होने लगी हूँ।

खुद के लिए थोड़ा

समय अब चुराने 

लगी हूँ।

अकेली हूँ तो क्या हुआ..

खुद के साथ थोड़ा समय

अब बिताने लगी हूँ।

मन के भाव भी अब

कागज़ पर उतारने लगी हूँ।

उम्र पचास के ऊपर

 हो गयी तो क्या

खुद को खुद ही अब तो

पहचानने लगी हूँ।

आंखों के नीचे काले घेरे

हो गए तो क्या हुआ

काजल से अब इनको

सजाने लगी हूं।

आईना भी अब तो 

पहचानता नही मुझे

फिर भी थोड़ा खुद को

 अब संवारने लगी हूँ।

सारी ज़िन्दगी दूसरों की

पसंद का ही सोचती रही

खुद की पसंद का भी

अब पकाने लगी हूँ।

पंछी घोंसले से उड़ गए

तो क्या हुआ..

अकेले ही घोंसले में

अब गुनगुनाने  लगी हूँ..!!

रीटा मक्कड़