आ गई है
शीत लहरी!
थरथराई है
दुपहरी!!
आग में गर्मी नहीं है
धूप में साया नहीं!
इस तरह का वक़्त तो
पहले कभी आया नहीं!!
टिल टिलाती है
गिलहरी!!
आ गई है
शीतलहरी!!
ताड़ सी लंबी हैं रातें
और बित्ते भर का दिन!
दांत पानी के उगे है
हवा चुभती जैसे पिन!
बन्द सूरज
की कचहरी!!
आ गई है
शीत लहरी!!
शिवचरण चौहान
कानपुर