एक प्रयत्न.

कुछ नहीं गिला  तुझसे 

जो पाया वह क्या कम है? 

अब तक जो मुझको मिला 

वह मुझे अमृत सम  है| 

कभी एक छोर छूटा  

तो मिला कभी ऐसा आंचल 

गम करती उसका कभी तो 

संभाल लेता कोई कदम| 

इसे  कर्मों का फल कहूं 

या तेरा यह आशीर्वचन 

पाकर सब करती हूं 

हे प्रभु तेरा अभिनंदन| 

कभी उहापोह से भरा  

तो कभी शांत ठहरा जल 

बनी रहूं अनवरत मैं कर्मठ 

हो ना कभी कर्तव्य विफल| 

इतने सुकृत्यों  के उपरांत 

मिला है यह  मानव तन 

गिला नहीं जब कुछ मुझे 

ना दुखे मुझसे फिर किसी का मन| 

चहुँ और मने फिर जश्न ही जश्न 

यही रहे  मेरा सदैव प्रयत्न|

सविता सिंह मीरा 

झारखंड 

जमशेदपुर