जीवन में हर दिन बनने-बिगड़ने वाले कुरुक्षेत्रों से मुकाबले के लिए गीता का आलंबन ही श्रेष्ठ

इन्दौर । गीता कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े अर्जुन की तरह हम सबको भी दिव्य दृष्टि प्रदान करती है। स्वयं भगवान के श्रीमुख से जिस दिव्य संदेश का प्रवाह हजारों वर्षों बाद भी पूरे विश्व को आत्म कल्याण के मार्ग पर प्रवृत्त कर रहा हो, उस संदेश की प्रासंगिकता पर कोई संदेह नहीं होना चाहिए। काम, क्रोध, लोभ और मोह जैसे विकारों से मनुष्य को मुक्त कराने वाले इस ग्रंथ की उपयोगिता कभी कम नहीं हो सकती, न ही कभी खत्म हो सकती है। हम सबके जीवन में भी हर दिन अनेक कुरुक्षेत्र बनते-बिगड़ते रहते हैं। इनसे मुकाबले के लिए गीता का आलंबन ही सर्वश्रेष्ठ और सर्वमान्य मंत्र है।
अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज ने आज गीता भवन में गत 12 दिसम्बर से चल रहे 64वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव के समापन सत्र में उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर जगदगुरु एवं अन्य संतों ने गीता भवन हास्पिटल के कायाकल्प के लिए 7 करोड़ रुपए की सहयोग राशि देने वाले समाजसेवी टीकमचंद गर्ग एवं राजेश गर्ग केटी का शाल-श्रीफल एवं पुष्पहार भेंटकर सम्मान भी किया। उन्होंने कहा कि पीड़ित मानवता की सेवा की दिशा में इस तरह के सेवा यज्ञ में आहुति देने वाले हर दृष्टि से सम्मान एवं अभिनंदन के अधिकारी हैं। सुबह की सत्संग सभा का शुभारंभ डाकोर से आए स्वामी देवकीनंदनदास के भजन संकीर्तन के साथ हुआ। आगरा से आए राष्ट्र संत हरियोगी, गोधरा से आई साध्वी परमानंदा सरस्वती, उज्जैन के स्वामी असंगानंद, अहमदाबाद से आए आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद भारती, अशर्फी भवन अयोध्या से आए जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्रीधराचार्य ने भी भक्तों को गीता, रामचरित मानस एवं अन्य धर्मग्रंथों की महत्ता बताई। गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, मंत्री राम ऐरन, सत्संग समिति के संयोजक रामविलास राठी, प्रेमचंद गोयल, महेशचंद्र शस्त्री, मनोहर बाहेती, हरीश जाजू, पवन सिंघानिया आदि ने सभी संत-विद्वानों का स्वागत किया। ट्रस्ट के मंत्री राम ऐरन ने आए हुए संतों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए अगले वर्ष पुनः 65वें गीता जयंती महोत्सव में पधारने का न्यौता दिया। इस अवसर पर आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में चल रहे विष्णु महायज्ञ की पूर्णाहुति भी संपन्न हुई। गीता जी की आरती के साथ महोत्सव का समापन हुआ।
अहमदाबाद के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद भारती ने कहा कि गीता के संदेश राष्ट्र में धर्म की स्थापना के लिए दिए गए हैं। धर्म की जिज्ञासा वाले लोगों को वेदों का सहारा लेना पड़ेगा। संत समाज को जोड़ने वाले होते हैं, तोड़ने वाले नहीं। वेद भी जोड़ने की ही बात करते हैं। गीता सभी ग्रंथों का सार है। जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्रीधराचार्य ने कहा कि दुर्लभ मनुष्य जीवन की धन्यता सदकर्मों से ही संभव है। मनुष्य में जितने विकार होते हैं, उनका उपचार गीता से ही संभव है। गीता कर्त्तव्य और निष्काम कर्म पर जोर देती है। बुद्धिमानों की सफलता तभी संभव है जब वे अपनी बुद्धि एवं मन को परमात्मा में समर्पित कर दें और भगवान की कृपा को अनुभूत करें। गीता जयंती जैसे उत्सव समाज को चैतन्य एवं ऊर्जावान बनाते हैं। गोधरा की साध्वी परमानंदा सरस्वती ने कहा कि गीता के संदेश शांत चित्त और शुद्ध मन से ही उतर सकते हैं। गीता जयंती महोत्सव पूरे देश में केवल इन्दौर में ही अनूठे ढंग से मनाया जाता है, यह सनातन धर्म के प्रति एक आदर्श और अनुकरणीय उदाहरण है। भगवान ने अर्जुन को गीता का संदेश देकर समूचे मानव जगत पर बहुत बड़ा उपकार किया है। उज्जैन से आए स्वामी असंगानंद ने कहा कि यदि हमारे कर्म में अहंकार का भाव होगा तो ऐसा कर्म सार्थक नहीं हो सकता। पाखंड और अहंकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकते। मनुष्य की जीवन यात्रा में काम, क्रोध, लोभ और मोह प्रबल शत्रु होते हैं और यह भी सच है कि कोई भी व्यक्त इन विकारों से बच नहीं सकता। गीता जैसे धर्मग्रंथ ही हमें इन दुर्गुणों से बचा सकते हैँ। आगरा से आए वेदांताचार्य स्वामी हरी योगी ने कहा कि जब तक हमारे अंदर वास्तविक श्रद्धा नहीं होगी, ज्ञान भी नहीं मिलेगा और भक्ति भी दूर ही रहेगी। महापुरुषों ने कहा है इंद्रियों की भोग की कामनाएं कभी खत्म नहीं होती। पतन की ओर बढ़ते हुए मनुष्य को पता ही नहीं चलता कि वह कितने गहरे खड्ढ में चला गया है। कामनाओं में बाधा आती है या उनकी पूर्ति नहीं होती है तो क्रोध का जन्म होता है। गीता इन सारे विकारों का शमन करती है। गीता जैसा ग्रंथ दुनिया में और कहीं नहीं हो सकता। अपने आशीर्वचन में जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज ने अध्यक्षीय उदबोधन में सबके मंगल और कल्याण की कामना करते हुए कहा कि मनुष्य से जुड़े सभी संशयों की एक ही चाबी है, वह है गीता। गीता में कर्म अर्थात कर्त्तव्य का सबसे अधिक प्रयोग हुआ है। भगवान का संदेश यही है कि हम कर्म करें, लेकिन उन्हें सदकर्म में कैसे बदलें, इसका विवेक हमें गीता से ही मिलेगा। गीता जैसा अदभुत जीवन दर्शन किसी और ग्रंथ में नहीं मिलता।
:: नियमित प्रवचन जारी ::
गीता जयंती महोत्सव के समापन के बाद भी गीता भवन की परंपरा के अनुरूप प्रतिदिन सुबह. 9 से 10.30 और सायं 5 से 6 बजे तक नियमित प्रवचन का क्रम जारी रहेगा।