श्रृंगार

तू भी आज श्रृंगार कर ले

कबरी को तू और अनिंघ कर ले

दुर्वादल बनाने को तू आज व्यायाम कर ले

तू अपने क्षीण कटि को आकार दे दे

मै तो ना कर सकू ये श्रृंगार

तू मुझ पर उपकार कर दे

तू ला मुझे बिसतंतु दे दे

की मै अपने ह्रदय को सुसज्जित कर लूं

मेरे आवाज की तू रसाल दे दे

की मै अपनी बोली को मीठा करू

और कुछ दे या ना दे

तू मुझे वो वरदान दे दे

मै कुछ करू या ना करू

मै अपने व्यक्तित्व को कानि करू

मै भी यह श्रृंगार करू

तू मुझे भी मेरा श्रृंगार दे दे

कीर्ति प्रकाश🎼

(कबरी- जूड़ा

अनिंघ- सुन्दर

दूर्वादल- दुबले पतले शरीर वाला

कानि- मर्यादा

क्षीण कटि- पतली कमर )