कार्तिक बीता,अगहन बीता
अब राजा जी पूस पधारे।
दिन कैसे मनहूस पधारे।।
हल्कू भून रहा है आलू
झबरा बैठा पूंछ हिलाए।
रात कंटीली, घना कुहासा
बिन कम्बल कैसे कट पाए।
फसल खड़ी है, बिना बुलाए
खेतों में हैं मूस पधारे।।
दिन कैसे मनहूस पधारे!!
टुकुर-टुकुर सब प्रेमचंद्र जी
देख रहे हैं आंखें फाड़े।
घर पर बुधुआ के प्रधान जी
बैठे अपनी आंखें गाड़े।
ताप रहे अलाव अब ककुआ
अब पुआल औ फूस पधारे।।
दिन कैसे मनहूस पधारे!!
थरथर कांप रही है गैया
सिकुड़ी बैठी है गौरैया।
पाला मार गया फसलों को
पाथर सी जम गई तलैया।
धूप छिपा कर रख आए हैं
सूरज जी कंजूस पधारे।
दिन कैसे मनहूस पधारे।।
अब राजा जी पूस पधार।।
# शिवचरण चौहान+++++
कानपुर