नकारात्मक नजरिया

          घर की दीवारोँ के अंदर दोनोँ भाईयोँ मेँ बहस हो रही थी .मामला था रिटायर्ड होने के बाद अकेले रह गये वृद्ध पिता किसके यहाँ खाना खाये ? (माँ तो बहुत पहले ही दिवंगत हो चुकी थी ) . एक ही मकान मेँ अलग अलग रहते दोनोँ बेटोँ मेँ आपसी प्रेम तो पर्याप्त था लेकिन पत्नी और बच्चोँ मेँ विवाद ना हो सभी अपने अपने अनुसार रहेँ इसलिये सारी व्यवस्था अलग अलग  ही थी .

    बडे बेटे का कहना था कि बडा होने के नाते  पिता की देखरेख की जवाबदारी उसकी ज्यादा है जबकि छोटे बेटे का कहना था कि छोटा होने के नाते उसका पिता पर ज्यादा अधिकार है इसलिये पिता उसके यहाँ खाना खाये .दोनो बेटोँ का स्नेह और श्रद्धा देखते हुए बूढे पिता ने निर्णय लिया कि वो एक सप्ताह बडे बेटे के यहाँ खाना खायेंगे और एक सप्ताह छोटे बेटे के यहाँ . इस तरह समस्या सुलझ गई थी सभी खुश थे . लेकिन …

घर की  दीवारोँ के बाहर पास पडोस के लोगोँ मे जोरोँ की सुगबुगाहट चल रही थी. आधी अधूरी जानकारी के आधार पर अनुमान लगाये जा रहे थे , इस उमर मेँ बूढे बाप के खाने के फजीते हो रहे हैँ . बेचारा कभी इस बेटे के यहाँ कभी उस बेटे के यहाँ खाना खाता है . क्या दोनो मे से किसी एक की इतनी भी क्षमता नही है कि बेचारे को अपने ही पास रख कर हमेशा खाना खिला सके . राम राम क्या घोर कलयुग आ गया है . 

   महेश शर्मा धार म प्र