कई वर्षों से
बंद है बात
धरती और आकाश की
दोनों तने हैं
खंज़र दोनों के
ख़ून से सने हैं
नहीं झुकना चाहता है
मुट्ठी भर कोई भी
स्वीकार नहीं है
अपनी लघुता किसी को
जबकि दोनों नहाते हैं
अपने- अपने प्रकाश में
अंधेरा भी पीते हैं
अपने ही हिस्से का
फिर बात क्या है
प्रयास किया है
समझने का जानने का
करनी पड़ी बड़ी मशक्कत
तब मैं समझ गया
कि दोनों ने चुभा ली थी
अपने हृदय में
अहं की एक बड़ी सी कील
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874