” बोलो क्या कहें “

दो नैनो से एक तीर चले

जब दिल मे लगे सब घाव भरे 

दिखता  ही नहीं है ज़ख्म कोई

जो दर्द मेरा हमदर्द  वो ही

दुखती रग को  छू  कर निकले

हम आह भरे और चैन  मिले

 इस उल्फत में भी झूमें मन

 इस गम को भला बोलो क्या कहें?

 देखा जब से अपलक ही रहे

 रस्ता कोई सूझे ही नहीं

 सूरज,चंदा,पानी,पर्वत

 हर अक्स तेरी परछाई बनी

 रुक गया जमाने का मंजर

 हम बुत बने बेकाबू हुए 

 अब होश नहीं, बेहोश नहीं

 हालत दिल की बोलो क्या कहें?

 पानी पिघले शबनम बनके

 और बर्फ जलाकर राख करे

 अबकी बरसात बरस के हुई

 हम भीगे मगर सूखे ही रहे

 पिये चकोर चाँदनी पीयूष

 मन रवि तप्त सी लौ माँगे

 व्युत्क्रम लहरों की थाप पड़े

 ऋतु बदल गई बोलो क्या कहें?

 महिमा तिवारी

रामपुर कारखाना,देवरिया।