” नव वर्ष की आहट…”

वो गुजर गई दिसंबर की तरह ,

मैं ठहर गया जनवरी की तरह ।

फासले तो इतने भी न थे कि ,

मिले भी तो हम अजनबी की तरह।।

कितना अजीब है ना ,

दिसंबर और जनवरी का रिश्ता ।

जैसे पुरानी यादों और ,

नए वादों का किस्सा ।।

दोनों काफी नाजुक है ,

दोनों में बहुत गहराई है ।

दोनों वक्त के राही है ,

दोनों ने बहुत ठोकर खाई है ।।

यूं तो दोनों का है वही चेहरा वही रंग ,

उतनी ही तारीख है उतनी ही ठंड ।

पर पहचान अलग है दोनों की ,

अलग है अंदाज और अलग है ढंग ।।

एक अंत है एक है शुरुआत ,

जैसे रात से सुबह और सुबह से रात ।

एक में याद है दूसरे में आस ,

एक को है तजुर्बा दूसरे को विश्वास ।।

दोनों जुड़े हैं ऐसे ,

धागे के दो छोर के जैसे ।

पर देखो दूर रहकर भी ,

साथ निभाते कैसे ।।

जो दिसंबर छोड़ जाता है ,

उसे जनवरी अपनाता है ।

और जनवरी की वादे ,

उन्हें दिसंबर भी निभाता है ।।

जनवरी से दिसंबर के सफर में ,

ग्यारह महीने लग जाते हैं ।

लेकिन दिसंबर से जनवरी तक ,

एक पल में पहुंच जाते हैं ।।

जब दूर जाते हैं ,

तो हाल बदल देते हैं ।

जब पास आते हैं ,

तो साल बदल देते हैं ।।

मनोज शाह मानस 

सुदर्शन पार्क, नई दिल्ली