शब्दों के अनगिनत किस्से, कुछ एहसासों के सिक्के ,
कुछ “हो चुकने” की बातें, कुछ “न होने” के पछतावे ,
मेरा सामान बस इतना ही तो है !!
हमारे छोटे-छोटे सपनें, कुछ उम्मीदें “बुद्धू-मन” की ,
तकना तेरी राहों को, कुछ मुड़-मुड़कर देखूं पीछे भी ,
मेरा इंतजार बस इतना ही तो है !!
सृष्टि के विपरित ध्रुवों से, हम-तुम धरती-अंबर जैसे ,
कुछ तुम कहना चंदा से, मैं तारों से कहूंगी “मन का”,
मेरा आसमां बस इतना ही तो है !!
कुछ तुझमें मेरा मैं देखूं, कुछ मुझमें तेरा तू पहचानें ,
बस मेरी बातें-तेरी बातें, ये ही हैं छोटी-छोटी सौगातें ,
मेरा संसार बस इतना ही तो है !!
हर पल ही महसूस किया, क्या भूलूं..क्या याद करूं ,
ऐ जिंदगी,कहूं क्या.. क्या-क्या मैं अब फ़रियाद करूं ,
मेरा प्रेम बस इतना ही तो है !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
उत्तर प्रदेश, मेरठ