वापस काशी
चलो कबीरा
अब क्या रक्खा है मगहर में।
लंबी तानो
सो जाओ अब
अब क्या रक्खा है जगहर में।।
काशी से दिल्ली की दूरी
सुगम और आसान हो गई।
छापा, तिलक ,जनेऊ,माला
सत्ता की प्रतिमान हो गई।
आज सुधारो
लाठी फेंको
कल किसने देखा लगहर में।।
अब क्या रक्खा है मगहर में।।
शिव शंकर अविनाशी भोला
देखो इनके ठाठ निराले।
सुना आपने ,शिवशंभू भी
कहलाएंगे दिल्ली वाले।
बैठो साधो
वायुयान में
क्या रक्खा पैदल डगहर में।
अब क्या रक्खा है मगहर में।।
देखा क्या परलोक किसी ने
पहले तो इहलोक सुधारो।
चादर मिली ओढ़ने को है
इसको चाहे कातो,फारो।
बदल गए हैं
धर्म-कर्म सब
फरक नहीं ठाकुर, मुसहर में।।
अब क्या रक्खा है मगहर में।।
# शिवचरण चौहान
कानपुर